साहित्य का उद्देश्य ही समाज का कल्याण होना चाहिए । मतलब जिस साहित्य में ’बहुजन हिताये और बहुजन सुखायें का भाव होता है, वही साहित्य समाज को एक नई दिशा दिखा सकता है । समकालीन हिन्दी दलित साहित्य क्षेत्र में साहित्यकार का अपना महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने अपने जीवन के भोगे हुए यथार्थ को बड़ी ताजगी के साथ रचनाओं में अंकित किया है। उन्होंने अपनी रचनाओं में दलित समाज के बच्चे बूढ़े युवा-युवतियों, सभी वर्ग का प्रतिनिधित्व बड़ी क्षमता के साथ किया है। उनकी कहानियाँ यथार्थ के धरातल पर समाज का प्रतिनिधित्व करने के साथ दलित चेतना के विकास में भी सक्षम है। उनकी रचनाएँ स्वानुभूतियों का जीवंत दस्तावेज है। उन्होंने स्वयं सामाजिक विषमता का जहर पिया है, परिमाणतः दलित यातना से रूबरू कराती उनकी रचनाएँ प्रबल आक्रोश के रूप में फूट पड़ती है। दबी-कुचली मानवीय संवेदना को आंदोलित करती है और उन्हें क्रान्ति की पहल द्वारा अपनी समस्याओं का समाधान तलाशने में प्रेरित करती है।.
This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
You may also start an advanced similarity search for this article.