भारतीय संस्कृति विश्व संस्कृतियों का मूलाधार है। संस्कृति से तात्पर्य प्राचीन काल से चले आ रहे संस्कारों से है। मनुष्य द्वारा लौकिक-पारलौकिक विकास के लिए किया गया आचार-विचार ही संस्कृति है। सनातन परंपरा के अनुरूप संस्कार की पद्धति ही संस्कृति है। अन्य साहित्य ग्रन्थों को छोड़ दिया जाय तो प्रथम कवि द्वारा रचित रामायण के अन्तर्गत विभिन्न विषयों का अवलोकन अध्ययनोपरांत प्रत्यक्ष होने लगता है । इसी विचारधारा के अनुरूप साहित्य जीवन संघर्ष के प्रति प्रेरित करती रहती है। इसी दार्शनिक सिद्धांत का अतुल भण्डार महर्षि वाल्मीकि के चरित्र में विद्यमान है । एतदर्थ महर्षि वाल्मीकि का परिचय सर्वप्रथम प्रस्तुत कर रहा हूँ ।
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